रविवार, 21 अप्रैल 2019

मदकूद्वीप के झूठ


मदकूद्वीप भाटापारा के पास शिवनाथ नदी पर बना द्वीप है। यह द्वीप 74 एकड़ में फैला है जिसमे से 6 एकड़ हरिहर क्षेत्र ट्रस्ट की भूमि है वही अन्य वन विभाग राज्य सरकार की। इस द्वीप के बारे में कई भ्रम है।

भ्रम 1- मदकूद्वीप एक ईसाई बहुल क्षेत्र है।
सच- मदकूद्वीप जिस मदकू गाँव में है वहाँ कोई ईसाई नही। मदकू पँचायत के आश्रित ग्राम दारुन कम्पा में सिर्फ एक परिवार के 4 लोग ईसाई हैं। नजदीकी ईसाई बहुल गाँव बैतालपुर है जो 8 किमी दूर है।

भ्रम- मदकूद्वीप ईसाई तीर्थ है।
सच- मदकूद्वीप के बारे में मान्यता है कि यहाँ पूर्वकाल में मांडूक्य ऋषि का आश्रम था। माण्डूक्यउपनिषद की रचना यहीं हुई है। गौरतलब है कि सत्यमेव जयते जो भारत के गणतंत्र का ध्येय वाक्य है वह इसी उपनिषद से लिया गया है।

भ्रम - 100 सालों से मसीही मेले का आयोजन किया जा रहा है।
सच- मसीही मेला सन 2002 को रौशनी में आया जब तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने इसका आयोजन कराया। उससे पूर्व के आयोजनों का कोई ब्यौरा नहीं है।
     मसीही मेले के आयोजन में पूरे जंगल मे छोटे पेड़ो को तहस नहस कर उस पर टेंट लगाया जाता है।बाद में भूसा फैला आग लगा दिया जाता है।  आज उस पूरे क्षेत्र में जितने भी पेड़ हैं, वह 18 साल से अधिक पुराने ही हैं। और हर वर्ष जलाए जाने के निशान देखे जा सकते हैं।

भ्रम- मसीही मेला धार्मिक आयोजन है।
सच- फरवरी माह में कोई ईसाई त्यौहार नहीं पड़ता। और मदकूद्वीप किसी ईसाई धर्मशास्त्र या इतिहास का हिस्सा नहीं है। यह मेला मिशनरियों की साजिश है वनभूमि पर कब्जा करने की।

भ्रम- मसीही मेला परम्परा है।
सच- मसीही मेले के दौरान 100 से ऊपर अस्थायी टॉयलेट बनाये जाते हैं जिसका अपशिष्ट सीधे नदी में जाता है। इस दौरान प्लास्टिक का भरपूर इस्तेमाल होता है। एवं रोज अनुमानतः 200 किलो माँस के अपशिष्ट भी नदी में बहाए जाते हैं।

भ्रम- यह एक आध्यात्मिक शिविर है।
सच- यह एक पूर्णतः पिकनिक है। जिसे धर्म का चोला पहना दिया जाता है। शराब के बोतल, कंडोम , डिस्पोजल और अन्य वस्तु जंगल मे देखे जा सकते हैं।

(जैसा स्थानीय लोगो ने बताया)