शनिवार, 23 फ़रवरी 2019

न भूलेंगे न क्षमा करेंगे 3

10 दिन में 10 झूठ और 10 सच।

देश किससे लड़े।पाकिस्तान और खिलाफत के हुक्मरानों से, तथाकथित भटके जवानों से या झूठे मक्कारों से जो देश को गुमराह कर रहे।

एक तस्वीर 2017 से है जिसे वामपंथी कविता कृष्णमूर्ति हुतात्माओं की अंतिम विदाई की बता छाप देती है। जब तक सच आता झूठ आगे निकल गया।

दूसरा crpf जवानों को गुलेल पकड़ाने वाले पूछ रहे कि कार कैसे आयी। रोड क्लेरेंस पार्टी को रोड ब्लॉक करने की इजाजत किसने हटवाई थी।

तीसरा bsf का एक लेटर दिखा कहा जा रहा कि भई एयर पिक क्यों नही किया।

चौथा मंत्री अल्फांसो की तस्वीर क्रॉप कर दी सिर्फ ये जताने की मंत्री ने सेल्फी ली थी।

पांचवा अफजल गुरु की बरसी मनाने वाले कह रहे चुनावी हल्ला है। बीजेपी ने कराया है हमला।

छठा शूटिंग प्रधानमंत्री वाले पूछ लें कि कितने बजे क्या हुआ।

सातवाँ सर्जिकल स्ट्राइक को झुठलाने वाले लोग एक सलाहकार समिति में रिसोर्स पर्सन के रूप में जनरल हुड्डा से बात करते है फिर खबर फैलाते है कि भाई ये हमारी पार्टी में आ गए है।

आठवाँ जब लगता है कि जनता और सरकार हमारे प्यारे पाकिस्तान के प्रति आक्रोश में है , तो यह जाति भेद का विष लाते है कि भई कम जात वाले मारे गये।

नवाँ मिस जनु शेहला रसीद यह अफवाह फैलाने मेलग जाती है कि कश्मीरी लड़कियों को तंग किया जा रहा।

दसवाँ सबका कसूर है मेरा प्यारा पाकिस्तान बेकसूर है। उन्हें बस इधर गलतियों का अंबार दिख रहा। इस बहाने वह आतंकवाद के हर कृत्य को सही ठहरा रहे।

ऐसे झूठ रोज आएंगे। युद्ध हम चाहते है। पाकिस्तान का विनाश चाहते है । पर ये छद्म लोग कुछ नही चाहते , ये आतंकियों का सेफ्टी वॉल्व है।

ये चाहते है आपका गुस्सा उन पर न निकले। उन पर शिकंजा कस रहे सरकार पर निकले।

ताकि जनसमर्थन का अभाव हो आपकी लौ कम हो। और हर हमले की तरह हम ये भी भूल जाये।

देश क्रान्तिकारिक कदमों की ओर बढ़ रहा।

जल सन्धि और व्यापार खत्म किये जा चुके है।

अंतराष्ट्रीय समर्थन आ चुका है।

युद्ध तब ही होगा जब सरकार पर यह दबाव रहेगा।

नही तो फिर बच जाएगा पाकिस्तान।

और जब तक पाकिस्तान रहेगा , किसी समस्या कोई हल सम्भव नही।


बुधवार, 20 फ़रवरी 2019

दुनिया भर की महिलाओं तुम्हें क्या चाहिये।

महिलाओं के हिस्से एक तमगा है कि उन्हें क्या चहिये ये कोई नही जान सकता।

मेरा इस तमगे से कोई समर्थन नही ।

क्योंकि मेरा मानना है कि महिलाओं को भी वही चाहिए जो एक इंसान को। शारिरिक जरूरतें, मानसिक शांति , समाजिक सम्मान और अधिकार।

पर फिर भी मैं पूछना चाहूँगा की तुम्हें क्या चाहिये। या कुछ चाहिये भी या नही।

अपनी दक्षिण की यात्रा में मुझे दो खूबसूरत चीजे लगी उनमें पहली है महिलाओं का गजरा और दूसरा महिलाओं का टैक्सी चलाना या बस कंडक्टर होना। तब मैंने उत्तर में ऐसा नही देखा था और ये मेरे लिए सुखद आश्चर्य था।

केरल जो सर्वाधिक साक्षर( शिक्षित नही) राज्य है । वहाँ पिछले दिनों सबरीमाला को लेकर बड़ा बवाल मचा हुआ था।

उसी केरल में कल से एक उत्सव चल रहा , एक ऐसे मन्दिर में जहाँ पुरुषों को जाना मना है।

उसी केरल में हजारों महिला कर्मियों को राज्य परिवहन ने नौकरी से यह कहते हुए निकाला कि फंड नही है।

विडम्बना यह है कि वहाँ मजदूरों के मसीहा कम्युनिस्टों की सरकार है।

उससे भी बड़ी विडंबना यह है कि महिलाओं की सैलरी कम है ।

अब फर्ज कीजिये कि अगर पुरुषों को नौकरी से निकाला जाता तो  पुरूष इस मंदिर में जाने के लिये कोर्ट में मुकदमा करेंगे कि नौकरी के लिये।

अब मैं फिर पूछ रहा

महिलाओं तुम्हें क्या चाहिये।

क्या यहाँ आना मना है लिखकर तुम्हें फालतू की लड़ाई में उलझा सकते है क्या?

न भूलेंगे , न क्षमा करेंगे 2

बचपन मे एक कहानी सुनी थी जिसमें एक लड़के को उसकी माँ हिदायत देती है कि बेटा अंधेरे में ढूंढने से कुछ नही मिलता। एक दिन बेटे की कोई चीज उसके कमरे में गुम जाती है। वो बाहर सड़क पर स्ट्रीट लाइट के नीचे ढूंढने लगता है। धीरे धीरे गुजरने वाले लोग इकट्ठा होकर ढूंढने लगते है। लड़के की माँ वापस आती है , तब पता चलता है कि वह चीज उसने खोई कमरे में है और ढूंढ रहा सड़क पर।
   पूछने पर लड़का जवाब देता है कि रोशनी यहाँ है तो यहाँ खोज रहा।

  आतंकवाद को लेकर हमारा रवैया भी ऐसा ही है। हमे सीखा दिया गया है कि सारे धर्म एक समान है। और आतंकवाद का कोई मजहब नही।
  इस समानता का घूँट हमे ऐसे पिलाया गया है जिससे हमें लगता है कि सारी सभ्यताओं के गुण दोष भी एक जैसे है।
    हमारी अंधता इस स्तर पर है कि हम सड़क पर ही आतंकवाद और उसकी वजह ढूंढ रहे।

ये अंधता एक दो दिन में नही आई है। यह लायी गयी है। इसे लाये है आतंकवाद से सहानुभूति रखने वाले लोग।

कश्मीर के विकल्प पर विचार करने वाले यह भूल जाते है कि कहानी कहाँ से शुरू होती है।

कश्मीर एक फ्री स्टेट था पर उस पर आक्रमण किया पाकिस्तान ने।

पाकिस्तान में किसके साथ न्याय हो रहा? जो आप कश्मीर उन्हें सौपना चाहते है।

कश्मीर के पण्डितो को किसने निकाला?
अगर आतंकवादियों ने तो उनके मकान दुकान तो खाली होंगे?

जिस यासीन मलिक ने लाल चौक के 90 फीसदी जगह पर कब्जा रखा है। वह क्यों चाहेगा कि कश्मीर भारत मे मिल जाये

यह लड़ाई आजादी की नही है। यह उस सब्जबाग की है जहाँ मुस्लिम समझते है कि एक गैर मुस्लिम को बने रहने का कोई हक नही।

यह लड़ाई बेरोजगारी की भी नही है। यह लड़ाई उस माँ की है जो कहती है कि अगर बन्दूक नही उठाएगा तो अललाह को कैसे लगेगा कि उसने ईमान कायम किया।

यह लड़ाई इस्लामी  मजहबी अंधो की है।

पर हम इसे यह कहने के बजाय इसे कश्मीर का, भटके जवान का , पाकिस्तान का मुद्दा बना रहे। यह मुद्दा उसी सोच का है जिसमे यह कहा जाता है कि मुसलमानों के साथ अन्याय हो रहा।
( अधिक इस लिंक पर पढ़े https://bayaanvir.blogspot.com/2018/04/blog-post.html?m=1 )

हम जब तक इस मानसिकता से नही लड़ेंगे तब तके कुछ नही हो पायेगा।

सनद रहे मैं ये नही कह रहा कि सब मुस्लिम दोषी है। हर कोई जो इस सच्चाई से जी चुरा रहा। झूठ बतला रहा वह उस खतरे की ओर समाज को ढकेल रहा।

रविवार, 17 फ़रवरी 2019

न भूलेंगे न क्षमा करेंगे -1

(प्रस्तुत कविता मौलिक नही है यह रमाशंकर विद्रोही की चर्चित कविता की पैरोडी है)
मैं रामप्रकाश
भारत पाकिस्तान के बीच तैनात हूँ।
कश्मीर मेरी गवाही दे।
मैं वहां से बोल रहा,
जहाँ कबीलाई ने कुचले है 47 से 48 तक सर,
और काटे है स्तन।
ऐसे ही कुचले सर
और ऐसे ही कटे स्तन
लाहौर से अमृतसर की ट्रेन में भी आये थे।
और दिल्ली के सड़को में बिखेर थे नादिरशाह ने।

मैं सोचता हूँ
और बारहा सोचता हूँ।
की आखिर क्यों मेरी सभ्यता के हर मोड़ पर
ऐसे कुचले सर
और ऐसे कटे स्तन रखे है।
जिसका सिलसिला
तैमूरलंग की दिल्ली से लेकर
जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन डे तक
और दाहिर की राजकुमारी से लेकर
मोपला की बेटियों तक चला जाता है।
एक सर जो किसी पिता का हो सकता है,
उसे ऐसे कुचला गया कि आँख जुबान के ऊपर आयी।
एक स्तन काटा गया है
उसमे से दूध निकला था,
चिपचिपा सूखा रखा है।
पर यह मुझे व्यथित नही करता।
मैं उन सरो और स्तनों को भुला
हर बार उन्हें गले लगाया,
जो गर्व करते है
हजार सर और लाख स्तन कटने के वाकयो पर।
मेरे पुरखे भी चाहते है शांति
वह भी देख आशीष देते है हर बार।
मैं भी कुचलता सर और काटता स्तन,
अगर न मान लेता की उनका मेरा ईश्वर
नाम से अलग है,
पर है एक ही।
पर एक ईश्वर है
जो मुझसे कहता है कि सिर्फ वही ऐश्वर है
उसकी बुते नही।
मैं बुतो को पूजता हूँ।
फिर से मेरा सर कुचल दिया जाता है।
मेरी बेटी का स्तन काट दिया जाता है।
मेरी बेटी कहती है बाबा इन्हें क्षमा करना
ये नही जानते ये क्या कर रहे।

जहाँ मेरी बेटी का स्तन फेका गया
मेरा सर भी वही।
मैं देख रहा की ये सर और स्तन
बंगालियों की भी हो सकती है।
अहमदियों की भी, शियाओं की भी
वजीबुल्ला का सर भी यही है।

क्योंकि अहले सदर तो अहले सदर है
उनका नाम क्या।
वो नादिरशाह भी है।
कासिम भी है।
तैमूरलंग भी है।
और अत्यधुनिक पाकिस्तान का isi भी

उनका एक ही काम है।
बुतों को तोड़ना
सर कुचलना स्तन काटना।

जिन्होंने दावा किया है
इतिहास को तीन वाकयो में पूरा करने का।
काफिरों का कोई हक नही।
हम जन्नत जमीन पर लाएंगे।
खिलाफत कायम करके रहेंगे।

पर मैं सहस्त्रबाहु का वंशज
परशुराम की प्रतिज्ञा के साथ जीता हूँ।
की आतताइयों मैं तुम्हारा विनाश समूल कर दूँगा।
पर मैं नही करूँगा।
क्योंकि जिस समय आप यह कविता पढ़ रहे।
ठीक उसी समय मेरी बेटी चोंच बना सेल्फी ले रही।
और मेरा बेटा किसी लड़की से न्यूड मांग रहा।
या यूं कहूँ की मैं लड़की के लिये रिश्ता ढूंढ रहा
और बेटा अमेरिकी वीसा की लाइन में है।
अटक से कटक ये जो चुतियापा फैला है मेरे दोस्त
एक दिन हम इसी से मारे जाएंगे।

इतिहास का पहला चुतियापा
श्वेतकेतु ने किया था।
उसने अपनी माँ को किसी के साथ देखा।
और पिता के साथ मिलकर विवाह का नियम बना दिया।

विवाह से बच्चे हुए।
बच्चों से जिम्मेदारी आयी।
पढ़ाई आयी।
घर बनाने की जिम्मेदारी आयी।
जिम्मेदारी रिश्वत की प्रेरणास्त्रोत होती है।

इस तरह
मेरा काम बनता भाड़ में जाये जनता का सिद्धांत आया।

फिर सिद्धांत ने कहा इतिहास की माँ की आँख
भेड़ियो को दो भेड़ो की रखवाली।
भेड़िये सताये गए है भेड़ो से।
उनके होने के कारण
चीखने के कारण
शांतिप्रिय भेड़िये बदनाम होते है।
फिर कलमनवीसों ने बताया
की भेड़ो को कभी भेड़ियो ने मारा ही नही।
कलमनवीसोंने यह भी बताया
की न बुते तोड़ी गयी।
न सर कुचले गए।
उनका ये भी मानना था कि गोधरा में,
ट्रेन सहित सवारों ने आत्मदाह किया।
और कश्मीर को पण्डितो ने स्वेच्छा से छोड़ा।
न उनकी सम्पत्तियों पर कब्जा हुआ।
न उनके सर कुचले गए।
न ही स्तन काटे गए।
फिर वही बात
पर ये सर कुचलने से पहले कंधो पर थे।
ये स्तन कटने से पहले छातियों में लगे थे।
जैसे ये कविता एक पैरोडी होने से पहले
एक अनदेखी सच्चाई है।
मैं कहता हूँ खुद को बचा लो बुतपरस्त लोगों
मेरे उत्तर के लोगो खुद को बचा लो
जिनकी दीवारों पर लिखा गया
पण्डित तुम जाओ , लौंडिया छोड़ जाओ।
मेरे दक्षिण के लोगो
जिनकी बेटियों को अरब में बेचा गया।
मेरे पूर्व के लोगो,
जिनके आमार सोनार बंगला को दो  हिस्सों में बाटा गया।
मेरे पश्चिम के लोगो
जहाँ हजार पद्मिनी को कूदना पड़ा अंगारो में।
खुद को बचा लो ।
मैं तो चन्द दिन पहले मारा गया पुलवामा में।