दिखावा बहुत गलत चीज है । यह फॉग मशीन के धुँए जैसा है।
पर जैसे धुँआ आग का लक्षण है। वैसे ही हर चीज का लक्षण है। और हर चीज का एक लक्षित।
लक्षण और लक्षित के बीच भाव होना चाहिये। अहंकार हो जाएगा है दिखावा है।
हमारे छत्तीसगढ़ में किसी से अभिवादन पश्चात सब्जी पूछने का प्रचलन है। यह आत्मीयता को दर्शाता एक अभिन्न लक्षण है।
आपको किसी के घर की सब्जी क्यों जाननी है ? क्यों इत्ता दिखावा कर रहे?
ऐसे सवाल भाव मे बेमानी है।
किसी भाषा मे बात करना उस भाषा के प्रति प्रेम है। आप जानते कई भाषा है। अपने इस भाषा को चुना।
किसी लिपि को चुनना उसका प्रेम है।
किसी icecream को पसंद करना प्रेम है।
सम्भव है कि आपको icecream खाने का मन हो पर आप रबड़ी से काम चला लिया हो।
सम्भव है कि आप देवनागरी लिखना चाहते है। पर फोन फोंट सपोर्ट न करता हो। तब आपने रोमन लिखा।
पर आपने रोमन लिख दिया और अब अहम में हो कि भई मैं ऐसी लिखता हूँ। तो यह एक जड़ता है।
क्योंकि भाव तो आपका देवनागरी से है।
अगर आपका भाव भी रोमन से है। तो यह आपका विशुध्द प्रेम है। वहां आप सही हो।
पर आपका भाव रोमन से है इसलिये आप देवनागरी के प्रति द्वेष रखें। किसी के प्रेम सम्मान को दिखावा कहें।
यह कुकृत्य है।
एक आम राय यह है कि हिंदी देवनागरी में सहज है। शायद इसीलिये टाइपिंग कष्टकर होते हुए भी सारे मुद्रित प्रकाशित दस्तावेज देवनागरी में हुए।
रोमन में हिंदी लिखने वालों को यह समझना चाहिये कि आप ऐसा कर किसी की मानसिक पीड़ा बढ़ा रहे।
यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला बिल्कुल भी नही है। क्योंकि लिखना व्यक्ति स्व के लिए नही करता।
खासतौर पर सोशल मीडिया में वह पूरे समाज के लिए लिख रहा।
इस कष्ट से मुक्ति पाये। सार्वजनिक मंच पर हिंदी हेतु देवनागरी का प्रयोग करें।