गुरुवार, 28 मार्च 2019

हिंदी देवनागरी में लिखना क्यों जरूरी है।

दिखावा बहुत गलत चीज है । यह फॉग मशीन के धुँए जैसा है।

पर जैसे धुँआ आग का लक्षण है। वैसे ही हर चीज का लक्षण है। और हर चीज का एक लक्षित।

लक्षण और लक्षित के बीच भाव होना चाहिये। अहंकार हो जाएगा है दिखावा है।

हमारे छत्तीसगढ़ में किसी से अभिवादन पश्चात सब्जी पूछने का प्रचलन है। यह आत्मीयता को दर्शाता एक अभिन्न लक्षण है।

आपको किसी के घर की सब्जी क्यों जाननी है ? क्यों इत्ता दिखावा कर रहे?

ऐसे सवाल भाव मे बेमानी है।

किसी भाषा मे बात करना उस भाषा के प्रति प्रेम है। आप जानते कई भाषा है। अपने इस भाषा को चुना।

किसी लिपि को चुनना उसका प्रेम है।

किसी icecream को पसंद करना प्रेम है।

सम्भव है कि आपको icecream खाने का मन हो पर आप रबड़ी से काम चला लिया हो।

सम्भव है कि आप देवनागरी लिखना चाहते है। पर फोन फोंट सपोर्ट न करता हो। तब आपने रोमन लिखा।

पर आपने रोमन लिख दिया और अब अहम में हो कि भई मैं ऐसी लिखता हूँ। तो यह एक जड़ता है।

क्योंकि भाव तो आपका देवनागरी से है।

अगर आपका भाव भी रोमन से है। तो यह आपका विशुध्द प्रेम है। वहां आप सही हो।

पर आपका भाव रोमन से है इसलिये आप देवनागरी के प्रति द्वेष रखें। किसी के प्रेम सम्मान को दिखावा कहें।

यह कुकृत्य है।

एक आम राय यह है कि हिंदी देवनागरी में सहज है। शायद इसीलिये टाइपिंग कष्टकर होते हुए भी सारे मुद्रित प्रकाशित दस्तावेज देवनागरी में हुए।

रोमन में हिंदी लिखने वालों को यह समझना चाहिये कि आप ऐसा कर किसी की मानसिक पीड़ा बढ़ा रहे।

यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला बिल्कुल भी नही है। क्योंकि लिखना व्यक्ति स्व के लिए नही करता।

खासतौर पर सोशल मीडिया में वह पूरे समाज के लिए लिख रहा।

इस कष्ट से मुक्ति पाये। सार्वजनिक मंच पर हिंदी हेतु देवनागरी का प्रयोग करें।

बुधवार, 27 मार्च 2019

आपके पास क्या बहाना है वोट न करने का।

कैसा लगेगा आपको की कल आपके घर के बाहर पर्चा चिपका दिया जाये कि अपनी बेटी बहन और पत्नी को यही छोड़ हमेशा के लिए इस शहर से चले जाओ।
  उन्हें ले जाने की कोशिश की तो मारे जाओगे।

आप किसी तरह अपने शहर से भाग जाते हो। मालूम चले कि आप ही नही कई परिवार इस जुल्म के शिकार हुए। जिनमें से कई रास्ते मे बलात्कार और हिंसा का शिकार हुए।

  सरकार आँख बंद कर लेती है। आपकी बरसो की कमाई सम्पत्ति पर आपके पड़ोसी, बचपन के दोस्त कब्जा कर लेते है।

   आप सोचते है दुनिया बड़ी है। कोई तो मानेगा। बरसो तक वो लोग जो पंछी आसमान और पतंग पर कविता लिखते है। वो आपके दर्द में शामिल नही होते है।

   प्रख्यात रिपोर्टर / पत्रकार उस घटना को यह कहकर टाल देते है कि आप ने बहूत सम्पत्ति जमा कर ली थी।

बड़े बडें मंचो से आपको सुरक्षित वापस बसाने के बजाय आपको  भूल जाने को कहा जाता है।

   शरणार्थी/हिंसाग्रसित तबको की जब चिंता जाहिर होती है| वहाँ कोई आपका नाम ले दे तो उसे साम्प्रदायिक करार देकर हाल से फेक दिया जाता है।

  पूरे 28साल बाद आपको यह सुविधा मिलती है की वो भारत मे कही से भी अपना वोट अपने मूल जगह के लोकसभा सीट हेतु दे सके।

अब बताइये आप क्यों वोट नही करने वाले?
 

मंगलवार, 26 मार्च 2019

वक्त है राहुल गाँधी को सीरियस लेने का -2

https://bayaanvir.blogspot.com/2019/03/1.html?m=1
से आगे

राहुल गाँधी शब्द इस्तेमाल करते है प्रति परिवार।

कानूनी तौर पर परिवार को परिभाषित करने की बड़ी आवश्यकता है। पंचायती अधिनियमों से लेकर श्रम कानूनों तक परिवार की अलग अलग परिभाषा है।

मोटा मोटा ( जो सबमें कॉमन है) वह कुछ इस तरह है।

एक छत के नीचे रहने वाला  एक चूल्हे में रोटी बाटने वाले एक परिवार।

एक व्यक्ति की दो शादी दो बीवी और उनके बच्चे दो परिवार गिने जा सकते है। भले रहना खाना एक साथ हो।

एक कृषक भले ही घर अलग , चूल्हे अलग और खेत की ऋण पुस्तिका का बंटन न हो । तो एक परिवार।

चर्च में हुई हर शादी परिवार का सृजन ( making of family) मानी जाती है। अतः एक छत एक चूल्हे में रहने वाले 2 जोड़े दो परिवार गिने जाते है।

राहुल गाँधी को सीरियस लेने की जरूरत इसीलिये है कि अगर यह योजना लागू होगी तो हितग्राहियों का बड़ा झमेला है।

नाम जोड़ने और काटने में क्या घपलेबाजी होगी यह कहना नामुमकिन है।

वक्त है राहुल गाँधी को सीरियस लेने का -1

सन 2011 से लगातार मैं राजनीति का दर्शक रहा हूँ। राहुल गाँधी का कद कांग्रेस के बाहर मूंगफली जितना ही है।
  राहुल गाँधी की एकमात्र राष्ट्रीय उपयोगिता सोशल मीडिया और इंटरनेट के विभिन्न माध्यमों को हास्य का कच्चा माल उपलब्ध कराने की रही है।
  पर अपने न्यूनतम आय की जो स्किम वो ले कर आयें है। यह एक सनसनी है। गम्भीर बात है। सम्भवतः पिछले 15 साल के राजनीतिक और आर्थिक उठापटक में सबसे गम्भीर।
पर हम जो राहुल गाँधी पर हसने के आदि हो चुके है। यह बात नही समझ रहे।

कारणों पर चर्चा करते है।

सरकार जब भी श्रम कानून में मुआवजे बोनस या किसी भी तरह की राशि की बात करती है। तो वह दिन के हिसाब से गिनती है। कि प्रति दिन इतने रुपये।
  राहुल गाँधी महीने में बता रहे ।
वे 12 हजार के न्यूनतम आय प्रति परिवार की बात कर रहे। जिसमें 6 हजार की अधिकतम मदद की बात कर रहे।
इसके माने ये है कि अगर कोई(परिवार) 6 या कम कमाये तो 6 हजार । अधिक कमाये तो सिर्फ उतना जिससे परिवार की कमाई 12 हजार हो जाये।
  चूंकि यह मासिक है अतः इसका प्रभाव नौकरीशुदा लोवर मिडिल क्लास लेंगे। इससे होना यह है कि उनके मालिक  6 हजार की राशि ही तय कर देंगे।
   अगर यह राशि हर साल न बढ़े तो अर्थव्यवस्था में भयंकर स्थिरता आएगी। क्योंकि एक बड़े समुदाय की आय स्थिर हो जाएगी।
  अगर यह राशि बढ़ जाये कि चलो अब अधिकतम मदद 6500 और गारंटी 12500 तब मालिको की चांदी हो जाएगी। मार्किट में पैसा बढ़ जाएगा। पर वेतन के खर्च स्थिर। इससे शहरी/ नगरी अमीरी गरीबी का अनुपात अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाएगा।
चलिए दोनो तरफ बढ़ा दिया कि 13000 को गारन्टी और अधिकतम मदद 6500 । तब स्थिति और खराब इससे कार्य शैली सबकी सरकारी हो जाएगी।
  कम आय वर्ग की पहुँच वाले सभी सर्विस सेक्टर की हालत खराब हो जाएगी।
   जिनमे पहली चपेट स्कूलों को लगेगी। महंगे स्कूल ही ठीक रहा जाएंगे। बाकी सब सरकारी समकक्ष।

शनिवार, 23 मार्च 2019

आपका अपराधबोध उनका हथियार है

बचपन में मास्टर की छड़ी याद है?

यह जानते हुए की जोर की लगेगी आप हाथ क्यों बढ़ाते थे?

क्योंकि आप न्याय के अधीन थे। आप मानते थे आपकी गलती है।

इस गलती मानने की प्रक्रिया अपराध बोध कहलाती है।

अपराध बोध आपके विचार से जुड़ा है। आपकी पहचान से जुड़ा है।

आतंकवादी कौन है और गनमैन कौन है?

इनके बीच मूलभूत अंतर इसी अपराध बोध का है।

आतंकवादी के कृत्य का किसी को अपराध बोध नही होता। वह हमेशा पाक साफ होता है।

9/11 से वह यह कहकर पल्ला झाड़ लेते है कि लादेन अमेरिका का टट्टू था।

26/11 का कसाब भटका हुआ नवजवान था।

संसद के हमले का मास्टरमाइंड अफजल तो इनका गुरु है। रहनुमा है।

बुरहान वानी एक हेडमास्टर का लड़का है।

अहमद अली दार को तो सेना मने पीट पीट कर जेहादी बनाया।

ये अपराध बोध आप मे है। यह एक बहुत निश्चल भावना है। जो आपको मनुष्य बनाये रखे है।
         यह आतंकवादियों के साथियों जो कलम और कैमरे का प्रयोग करते है उनका बड़ा हथियार है।
ये हथियार ये तीन हिस्सों में चलाते है।

पहला - हेडलाइन । हेडलाइन में जिस तबके में अपराधबोध जगाना हो उसे अपराधी से जुड़ा  दिखाना।
अमूमन देख लीजिये की अपराधी उच्च जाति सवर्ण हिन्दू है क्या? क्या किसी तरह उसे मोदी या भाजपा से जुड़ा बता सकते है। अगर नही तो क्या इसके अपोजिट किया जा सकता है। कि विक्टिम की पहचान उजागर की जाए। अगर ये भी न बन पड़ रहा तो तस्वीर, थम्बनेल या किसी स्केच द्वारा ऐसे प्रतीकों पर हमला कर सकते है क्या?

दूसरा - विमर्श। जो बात हमने कही वो सच है। चाहे जांच चल रही हो। चाहे कोई और अपराधी पकड़ा गया हो। कुछ भी हो। एक पहचान बना दी गयी। गौरी लंकेश और कठुआ बलात्कार केस एक बड़ा उदाहरण है।

तीसरा - रिपीटेशन। गला काटा झटके से भी जाता है और आहिस्ते से रेता जाता है। बार बार एक बात को दोहराया जाता है। जैसे वह परीक्षा का imp प्रश्न हो।
गौ चोरी के आरोप में किसे मारा गया?
ट्रेन में सीट की लड़ाई में कौन मारा गया?
Jnu से कौन लड़का गायब है?
2002 में कहाँ दंगे हुए थे?
होली के अगले दिन कहाँ लड़ाई हुई?
कहाँ मस्जिद पर हमला हुआ?

ये सभी सवाल आपको मीडिया के जरिये रटाये गए है। बार बार । आपका अपराध बोध बढ़ाने के लिए।

कुछ और सवाल है जिन्हें छुपाया गया। या एक बार पढ़ दिया गया।

पिछले 3 दिन में किसने 600 ईसाई छात्रों को मार दिया।
दिल्ली में जो डॉक्टर रोड रेज में मारा गया क्या नाम था उसका।
कासगंज में किस लड़के को तिरंगा रखने के कारण मार दिया गया।

इनके जवाब आपको दिमाग मे जोर डालकर भी नही मिलेंगे।

आपके अपराध बोध में आप कभी notmyname लेकर खड़े हो जाते हो।
कभी टोपी बुरका पहन कर ।

यह आपकी आत्मा को सन्तुष्टि देता है।

पर जो इन्हें हथियार समझते है। उनके लिए आप हँसी के पात्र हो।

वह आपको उस हद तक ले जाएंगे। जब आप अपना हाथ खुद आगे कर लो।