शुक्रवार, 7 जून 2019

कठुआ से अलीगढ़ तक मीडिया के खुराफात

अलीगढ़ की घटना से कठुआ का जिन्न बाहर आया।

मीडिया के दानवों के अपने पैंतरे है , हेडलाइन और by लाइन के जरिये खबर को कुछ और बनाने की।

कठुआ कांड में एक बच्ची का शव मिला। जो मुस्लिम थी। घटना की तफ्तीश के बाद दो स्थानीयों की गिरफ्तारी हुई।

पर चार दिन बाद इलाके के मुस्लिमों ने दबाव बनाया की गाँव के मंदिर के पुजारी , उसके बेटे और एक जमीन जिसमे मस्जिद बनाने को लेकर विवाद है उसके हकदार मालिक को इस मामले में अभियुक्त बनाया जाये।
  ऐसा किया गया। तब खबर बनी की रेप हुआ है। मंदिर में हुआ है। शिवलिंग पर कंडोम चढ़े पोस्टर बनाये गए। त्रिशूल को योनि में सजाकर कार्टून बनाया गया।

जब इलाके के वकीलों ने गिरफ्तारी का विरोध किया तब बीबीसी की खबर बनी की रेप के आरोपी के समर्थन में जुलूस।

मंदिर का पुजारी 70 साल का है। उसका बेटा उस पूरे साल मेरठ में रहा। और तीसरे अभियुक्त को लेकर भी कोई खास सबूत नही मिला।

दिल्ली की एक अधिवक्ता ने फ्री केस लड़ने की बात की परन्तु किसी सुनवाई में नही आई। एक अन्य सामाजिक कार्यकर्ता ने इस केस बाबत 12 लाख की रकम इंटरनेट पर भावनात्मक अपील से जुटाई जो आजतक पीड़िता के परिवार को नही मिला।

आज कठुआ में मंदिर नही है। घाटी के 492 मंदिरोंकी तरह  उसेजला दिया गया। जो दो अभियुक्त पहले पकड़े गए , वे आजाद है।

तीन अभियुक्त अभी भी बिना किसी कानूनी प्रक्रियाओं के जेल में है। जिला प्रशासन उन्हें यह कहकर छोड़ने से मना कर रहा कि दंगे हो सकते है।

अलीगढ़ मामले को लेकर भी लीपापोती जारी है।

एक वेबसाइट लिख रहा कि पैसे को लेकर विवाद में हत्या हुई। मानो पीड़ित के परिवार ने पैसे लिए हो। हेड लाइन होनी चाहिये थी कि कर्जदार ने हत्या की।

अगली हेडलाइन है कि अपनी बेटी के रेप का भी आरोपी है। इसे एंगर मैनेजमेंट कहते है। मीडिया चाह रही कि आपका गुस्सा दब जाए। "अरे वो तो वैसे ही है' इस एक लाइन से काम हो जा रहा।

सवाल यह है मीडिया यह क्यों कर रही?
जवाब-

bayaanvir.blogspot.com/2019/03/blog-post.html?m=1