रविवार, 26 मई 2019

राहुल गाँधी- कांग्रेस के साम, दाम , दण्ड, भेद।

राहुल गाँधी को क्यों नही हटा सकते ?

साम - 70 साल की कोशिशों में सबसे बड़ी सफलता रही गाँधी नेहरू के आकाश की स्थापना की। सबने मिलकर यह साबित किया कि गाँधी और नेहरू से बड़ा कोई नही। आसपास भी नही । न उन्होंने कोई गलती की न कभी कुछ गलती हुई और न ही उनके कार्य का कोई नकरात्मक मूल्यांकन हो सकता है।
   इंदिरा और राजीव की कहानी भी ऐसी ही फैलाई गई कि गाँधी नाम के डीएनए में कुछ भी जो परालौकिक है। राहुल उस डीएनए के धारक है। उन्हें राजा बनने पड़ेगा।

दिनकर कहते है - जहा स्वर्ण है बम वही फटेगा।

राजनीति दाम मांगती है। कांग्रेस और अमूमन हर पार्टी में भ्रष्टाचार का एक पिरामिड होता है। उस पिरामिड के शिखर पर जो है उसकी ईमानदारी उस पार्टी या यूनिट की ईमानदारी है।

एक लंबे समय से जो भी कांग्रेस में हो रहा , उसके शिखर पर गाँधी परिवार है। जो असल मे गाँधी है ही नही। बसपा में यही पोस्ट मायावती , स्पा में यादव फैमिली, राजद में लालू के पास है।

राजनीति का दूसरा अस्त्र है भेद। कांग्रेस इसे बड़ी तेजी से भुनाना जानती है। कांग्रेस के लिए जब भी जन आक्रोश उपजता है वह एक सेफ्टीवॉल्व लगा उसे निकलने का प्रयास करती है। एक नायक खड़ा होने देती है और कालांतर में उसे अपने साथ मिला लेती है। कांग्रेस के खिलाफ खड़े लोगो को वामपंथ में आशा दिखी। 80 के दशक तक यह साबित हो गया कि कांग्रेस सेंटर तो लेफ्ट है।
80 में जनता सरकार आयी। लोहिया और जे पी के शिष्यों ने कांग्रेस के विरुद्ध अलख जगाई। 20 बरसो में यह भी स्पष्ट हो गया कि कौन किसके साथ है। ममता और शरद दो नेता तो बागी रहे कांग्रेस के।

दंड- राहुल गाँधी दण्ड ही तो है। कांग्रेस को अगर एक सुलझा लीडर मिल जाये। जो उसे उसके मूल्यों के साथ सफलता की ओर चले तो फिर देश मे बचा क्या? कांग्रेस के पापों का दंड राहुल गाँधी है।
फिर एक 10 12 साल का दौर आया जब लोगो को राजनीति से अश्रद्धा हो गयी। अटल आडवाणी ने बिगुल फूंका । सरकार चलाई। पर जनता हिसाब किताब नही करना चाहती थी।
मनमोहन काल मे युवा उत्थान हुआ। इंटरनेट ने दुनिया सस्ती और सुलभ कर दी। अब देश एक और आंदोलन के कगार पर था। अब हीरो आया केजरीवाल।
केजरीवाल फ़टे ढोल साबित हुए। अब स्थिति यह है कि कांग्रेस के मुट्ठी में सबके भेद है।
  जितने नाम दिए जा रहे उसमे कोई भी राहुल गाँधी की केंद्रीय भूमिका के बिना फ्रंट के बारे में नही सोच सकता।

गुरुवार, 23 मई 2019

नरेन्द्र मोदी आप असफल है।

आज यह बात कहना हास्यास्पद जरूर है।

पर सच के आईने से देखे तो आप असफल है।

यह लोकसभा चुनाव जीतने के लिए आपको कई संसदीय क्षेत्रों में प्रत्याशी बदलने पड़े। यह इस बात का जीता जागता प्रमाण है कि 2014 में आप पर भरोसा करके जिस किसी को भी लोगो ने अपना सांसद बना लिया आप उस पर इस बात का अनुशासन नही बना पाए कि वोट अगर मोदी ने दिलाया है तो कम भी मोदी के लेवल के हो। आपको फिर वही राग 2019 में अलापना पड़ गया।

रोहित वेमुला, गौ रक्षक, अखलाक और ऐसे ही हजारों मुद्दे है । जिनमे आपके समर्थक मुद्दे की तह तक जाकर विमर्श खोज रहे थे। लोगो को प्रोपगंडा समझा रहे थे, आप ने वहाँ फर्जी मसीहा बनने की कोशिश की।
        देश ने आप पर इतना विश्वास करके इतना बड़ा जनादेश दिया था। और आप अपने डर से नही लड़ पा रहे। ये कैसी कायरता है आपके भीतर। एक सन्यासिनी को माफ न करने की बात आप कह सकते है परंतु जनता ने बताया कि वो आपको माफ करते आ रही।

मोदी जी, आपको इस बार स्पष्टतर सन्देश है।

अपने ध्येय पथ पर बढिये।

गोडसे के नाम पर डराना बंद करें।

इस देश की आत्मा राम है।

राम किसी से भय नही रखते , वे भी रखते है अपकीर्ति से।

इस देश मे अपकीर्ति के शिखर पर बैठा है गोडसे।

यहाँ सब को क्षमा है। हर अपराधी के साथ कोई न कोई खड़ा है।

कुख्यात से कुख्यात आतंकवादी की बरसी से लेकर लिगेसी सेलेब्रेट करते लोग आपको मिल जायेंगे।

बस गोडसे का नाम लेना आपको अपराधी बनाता है।

अगर किसी तरह आपको गोडसे के साथ इन्वॉल्व कर दिया गया तब तो आप कलंक के ब्लैकहोल में चले गए।

गोडसे के अपयश को हर तरीके से भुनाया जाता है।

गाँधी के बरक्स उन्हें खड़ा कर हर प्रोपगंडा सही हो जाता है।

कांग्रेस चुनाव हार गयी। गाँधी का देश गोडसे का हो गया।

गाँधी के नाम पर इस देश मे कुछ भी थोप सकते है। अगर किसी ने चु की तो वह गोडसे का हो गया।

पाकिस्तान चले जाओ।

पिछले पाँच साल में एक वाक्य बहुत इस्तेमाल हुआ । पाकिस्तान चले जाओ।

पाकिस्तान बनने के पीछे जो कारण था , वह यही था कि जिन्हें इस बात पर भरोसा नही की भारतीय लोकतंत्र में( यह बात स्पष्ट थी कि भारत में लोकतंत्र ही आएगा) आस्था नही, जिन्हें लगता है कि भारत की बड़ी आबादी उनके साथ न्याय नही करेगी, जिन्हें लगता है कि भारतीय जनता अपने लिए सही नेता चुनने में और सही खतरों को पहचानने में अक्षम है , उनके लिए एक अलग देश की व्यवस्था की गयी।

       उस देश मे सारे प्रयोग हुए जो एक भारतीय वामपंथी लिबरल की इच्छा है। वहां लोकतंत्र आया, फिर कॉमरेडों ने तख्त पलटे, सैनिक शासन भी आया, तानाशाह होने के आरोप में एक चुने हुए नेता को सरेआम फाँसी दी गयी। हजारो मंदिर तोड़े गये, गंगा जमुना तहजीब की थाती बनी। समांतर रूप से गाने, शायरी और बाजा भी चलता रहा।

  आज देश फिर एक मुकाम पर खड़ा है। जहाँ किसी को अमेठी में युवराज का हारना कलंक लग रहा। जहाँ किसी को तीन लाख वोट से जीती प्रज्ञा चुभ रही। जहाँ कन्हैया का 4 लाख वोट से हारना ।
 
       इन्हें देश के विवेक पर शक है। इन्हें बड़ा गुस्सा है कि भई इस देश की जनता हमसे अलग कैसे सोच सकती है। जब हमने कहा कि फलाना नेता गलत है तो है। जब हमने कहा फलाना आदमी देवता है तो है।

   इनके लिए संविधान में संशोधन होना चाहिये। चुकी हर नागरिक को समान वोट अधिकार मिलने से वह गलत सरकार चुन लेती है इसलिये सिर्फ इसलिये इन्हें अधिक वोट करने का अधिकार होना चाहिये।
पूरे देश का वोट एक तरफ और इन्हें कोई वीटो की तरह कुछ । हर चुनाव, हर क्षेत्र में परिणाम बदल सकें।

क्योंकि जनता तो मूर्ख है।

जिन्होंने 47 में यह कहा कि जनता मूर्ख है , और हमे इस पर यकीन नही। उनसे हमारे नेताओं ने कहा - जिन्हें ऐसा लगता है  , उन्हें अलग मुल्क मिलना चाहिये।

आपके पास मुल्क है। जहां की जनता मूर्ख नही है। जहां का प्रधानमंत्री स्टेट्समैन है, जहाँ हिन्दू आतंकवाद नही है। gst नही है। स्वच्छ भारत अभियान नही है।

आपको वहाँ जाने पर विचार करना चाहिये। हम कलंकित लोगो का देश आपके रहने लायक नही रह गया।