मंगलवार, 28 अगस्त 2018

हिन्दू आतंकवादी क्यों नही बन सकता।(1)

हिन्दू आतंकवादी क्यों नही बन सकता।(1)

        एक आम क्रिमिनल और आतंकवादी में बड़ा फर्क है कि आम क्रिमिनल के पीछे वह भीड़ नही होती। जो उसे हीरो बताए। ये भीड़ जैसे जैसे बड़ी होती है उसका स्वर तेज होता है। यह आतंकवादी के लिए प्रेरणा का कार्य भी करती है और कवच का भी।
    कुछ दिनों पहले सनातन संस्था के वैभव राउत को ats उठा लेती है। उठा लेती है इसलिये क्योंकि यह पूरा प्रकरण बिना वारंट या पंचनामा के होता है। तीन दिन बाद तक सामग्री बरामद होने की खबर आती है।
    कल नक्सल सहानुभूति के पुरोधाओं को पुलिस गिरफ्तार करती है । वारंट और कागजो के साथ।
        स्लीपर सेल सक्रिय हो उठता है। उसे अदालत और सिस्टम पर यकीन नही। क्योंकि उनकी आजादी के मायने कम्युनिज्म लाना है।
   बहुत सम्भव है कि वैभव राउत निर्दोष हो। कठुआ के उस पुजारी की तरह ।
    पर हिन्दू समाज भीरू है। उसे मर्यादा पुरुषोत्तम राम की तरह डर है तो सिर्फ लोकापवाद का।वर्तमान में हिन्दू इस लोकापवाद से इतना डरा है कि वह हिन्दू कहलाने से भी डरता है।  वह किसी आरोपी के पक्ष में खड़ा नही होगा।
    कुछ लोग इस डर से बाहर आते है। वे निर्दोष या दोषी दोनों का पक्ष लेते है। पर इनका समय अधिक नही रहता। ये मान लेते है कि मनुष्य अच्छा बुरा होता है। परधर्मी के मायने अधर्मी नही होते।
     उसके हाथ मे न्याय की तलवार नही होती। वह किसी न्याय का प्रतिशोध नही लेना चाहता। वह किसी ईश्वरीय आदेश के तहत मार्ग दिखने नही निकला है। वह अपने कष्ट में किसी शैतान का हाथ नही मानता।

गुरुवार, 28 जून 2018

आज थियेटर में संजू चीखेगा की वो आतंकवादी नही है।

आज थियेटर में संजू चीखेगा की वो आतंकवादी नही है।

इससे पहले हम देख चुके की दाऊद भी आतंकवादी नही था। बस एक महत्वाकांक्षी बालक था। याकूब मेमन तो बस एक व्यापारी था। यासीन भटकल इंजिनीअर है जिसे नौकरी नही मिली। और बुरहान वाणी 90 बलात्कार और 100 से ज्यादा हत्या के बाद भी एक हेडमास्टर का बेटा है।

दुर्दशा ये है कि हम ऐसे लोगो को ग्लोरीफाई कट रहे जिनका अपराध उनकी इच्छा है। उनका नशा है। हम उस अपराध में एक उत्तेजना और एक न्यायपाल्य कारक खोज रहे। यह उनकी अहम की तुष्टि का नमूना है।

 

ऐसे हीरो हमे कहाँ ले जाएंगे। क्या हम बच्चों से कह रहे कि बेटा देखो तुम हमेशा हीरो रहोगे । तुम्हारे साथ सब अच्छा हुआ तो ठीक। नही तो तुम बुरे बन जाना।

यह नरगिस का बेटा है। नरगिस का एक बेटा मदर इंडिया में भी था। जिसे उसने गोली मार दी।

माता अहिल्या बाई होलकर और बहादुर कलारिन ने ऐसा रियल लाइफ में किया।

अब हमारे लिए बेटे अहम है।

और फिर हम सवाल करते है। कि भला समाज ऐसा क्यों है।

शुक्रवार, 15 जून 2018

क्या सच मे भगवान बीमार है

भगवान बीमार है।

 भगवान जगन्नाथ बीमार है। एक अखबार ने छापा और लो टूट पड़े यह कह कर देखो ये अंधविश्वास इनका भगवान भी बीमार है।

     जिस अब्रह्मिकता ने आपको जकड़ रखा है। वहां भगवान और भक्त का यह रूप समझना मुश्किल है। यह समझना मुश्किल है कि कैसे मीरा कान्हा में समा गयी।

     छोड़िए। भगवान के बीमार होने के आशय पर आते है। जेठ के अंतिम दिन भगवान बीमार होते है। तब उन्हें पथ्य दिया जाता है।

     वो फ़िल्म याद है जिसमे अमिताभ अपनी पत्नी के लिये करवाचौथ रखते है।

    कुछ वैसा ही उड़ीसा बंगाल और छत्तीसगढ़ के हजारों श्रद्धालुओं इस पन्द्रह दिन निरामिष भोज करते है।

   बरसात की मछली और गन्दगी से बचने में यह कितनी कारगर है।

  सोचिये कितने सालो से एक श्रद्धा एक विश्वास महामारी से कई पीढ़ी बचाते आयी है।

      खैर ईद मुबारक।

गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

चलो दलित दलित खेंले

2 अप्रेल के वाकये को लेकर मैं हतप्रभ हूँ। इतना व्यापक बन्द , हिंसा और आगजनी रही। पर इसके पीछे की रणनीति किसकी रही इससे सब अंजान रहे। यह एक दिन का बन्द था। एक दिन का घटना क्रम। पर समय के धार ने दो निशान किये थे। एक 2000 साल लम्बा था और एक 60 साल लम्बा। यह एक दिन दोनों घावों पर रिस रहा।

  अपनी खोज में मैने पाया कि बसपा और कांग्रेस ने बन्द को समर्थन दिया। दोनों ने कहा कि 2 अप्रैल को बंद का समर्थन किया जाता है। पर कोई ऐसा बयान नहीं मिला जहाँ बन्द का आवाह्न हो।

     

     यह जरूर था कि बन्द की पूरी चर्चा सोशल मीडिया से मिली।

  अपनी तहकीकात में और अंदर जाते है। न्यूज़ रिपोर्ट्स देखिये , आधे से ज्यादा लोगों को पता ही नहीं किस बात का विरोध है। एक हाथ में  मोदी विरोधी पोस्टर है। एक हाथ में हिन्दू देवी देवताओं की तस्वीर , जिनपर थूका जा रहा था, चप्पल चलाई जा रही थी।

           एक बड़ा हिस्सा गुमराह था कि सरकार आरक्षण खत्म करने वाली है इसलिये ये प्रदर्शन है।

      

मेरा निष्कर्ष यह है कि एक बड़ी आबादी या तो नियोजित थी, या फिर गुमराह।

नियोजित लोगों की बात नहीं करूँगा, क्योंकि यह मुद्दा भटकाएगा।

गुमराह लोगो की बात करूँगा।

इन्हें किसने बताया होगा कि फैसला हो गया। अब दुकान जलाना ही एक मात्र उपाय बचा है।

जाहिर है उन्होंने , जो इनके रहनुमा बनते है।

ऐसे लोग जो गुमराह नहीं थे। जिनके पास जानकारी थी। उन्होंने वो जानकारी इनसे छुपाई। इन्हें गुमराह किया।

आओ दलित दलित खेंले भाग 1

कौन है वह कम्बख़्त।

     इंदिरा गाँधी के प्रथम कार्यकाल के बाद, मोरारजी देसाई और जगजीवनराम राजघाट पहुँचे, आशीर्वाद लिया। मोरारजी प्रधानमंत्री बने।  जगजीवन राम ने दलित संघर्ष का मार्ग लिया। जगजीवनराम से बाबू जगजीवन राम बन गए और जब स्वर्गीय बाबू जगजीवन राम बने तो दलितों की बस्ती उजाड़ वहाँ स्मारक बना।

     तब से परम्परा है कि दलित जब ऊपर जाता है । वो चेहरा बन जाता है। बाकी के दलित शरीर के बाकी अंग। मायावती पर ऊँगली नहीं उठायी जा सकती। काशीराम जांघ में हाथ मारकर किसी  की बेटी का नाम ले सकते हैं। ये चेहरा है, बाकी के दलित इनका अंग।

  पुरुष सूक्त याद है।

राजन्य: कृत: ब्राह्मणोऽस्य मुखामासीद्वाहू।

ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत।

बिल्कुल उसी तरह। 70 साल में हर वर्ग के भीतर चार वर्ग बन गए है।

  विडम्बना यह है कि हर वर्ग अपनी चिंता कर रहा। निचला वर्ग पिस रहा।

मंगलवार, 3 अप्रैल 2018

फर्क तो है भाई उनमें और हम में।

उनके और हमारे बीच एक बड़ा फर्क है। और ये फर्क बना रहना चाहिये।

आज एक वाकया हुआ। 2 अप्रैल  के बन्द में एक मुस्लिम ने हनुमानजी के तस्वीर पर थूका| मैंने उस बाबत पोस्ट डाली। और अगली पोस्ट में वह वीडियो लगाया जिसमें मामला दर्ज है।

     एक जनाब को वाकये पर हँसी आयी, मैंने उसे आतंकवादी कहा। एक जनाब और आए उन्होंने कहा कि जो भी हुआ बुरा है, पर आप उसे आतंकवादी मत बोलिये।

माने तस्वीर पे थूकने और उपहास का बदला आप किसी को गाली देकर मत निकालिये।

  अब 6 साल पुराना वाकया सुनिये। एक कागज जलाते हुए तस्वीर पर हर किसी की रजामंदी थी कि या तो इसे मार दिया जाए या यह तौबा कर इस्लाम कबूल करे। मैने पूछा कोई और रास्ता नहीं है। तो जवाब मिला नहीं।

दोनों वाकयों पर गौर करें पहले में राकेश पटेल का मानना था कि हनुमान की तस्वीर थूकने से कोई आतंकी नही होता। वहीं दूसरे वाकये में पूरी कौम सहमत है कि तौहीन ए कुरान/रसूल वाजिब उल कत्ल है।

पहले के लिए इंसान की कीमत ज्यादा है दूसरे में आसमानी खुदा की। यही फर्क है अब्राहमिक और सनातन में।

एक उदाहरण और।

2 अप्रैल को बंद का फरमान हुआ। सब तय हो गया। अब 10 को फिर आवाहन है पर इधर के लोग तितर बितर है, विरोध में भी हैं।

अब्रह्मिक केंद्रीय सत्ता है। सनातन सार्वभौमिक है।

इसे समझिये।

अब्रह्मिक्ता मानसिक गुलाम बनाती है। सनातन सच्चिदान्द।

सोमवार, 2 अप्रैल 2018

इस्लाम ख़तरे में है।


क्यूँ आ गए यहाँ तक हम |


    भारतीय दर्शन में चिंतन और मनन की एक अपार परंपरा है |


आज यूरोप में आज बिट अ मुस्लिम डे मनाया जा रहा |


मुसलमानो की समस्या क्या है |


       मुसलमानो की समस्या यह हैं की कोई उन्हे गले नहीं लगाताऔर अगर किसी ने गले लगा लिया तो समय के साथ वह उनसे छुटकारा चाहता है | उन्हे पूरी दुनिया मे नकारा जाता है |दुनिया भर के एयरपोर्ट मे तलाशी ली जा रही | दुनिया भर के लोग काम देने से डरते है | दुनिया भर के लोग आपके मुद्दो पर बोलने से डरते है | बड़ी सहनुभूति होती है मुझे यह देख कर |मेरे चिंतन में इसके कुछ कारण –


1 खुद को कौम समझना – एक मुस्लिम कभी व्यक्तिगत आस्था की बात नही करता | वह हमेशा पूरे कौम की तरफ से बात करता है |


2 शुद्धता का दंभ – दुनिया भर के मुस्लिम एक बात पर एकमत है की किसी भी तरह की ज्यादती , इस्लाम के भीतर नही हुई | न अरब में मानवाधिकार का उल्लंघन हो रहा | न पाकिस्तान मे अहमदी मारे जा रहे | न कभी किसी मुस्लिम शासक ने जबरिया धर्म बदलवाया| और न ही तीन तालक कोई स्मजिक समस्या है \


3 विक्टिम क्राय – मुस्लिमो को लगता है की पूरी दुनिया मुसलमानो पर जुल्म करने को प्रतिबद्ध है | किसी वाकया पर इनकी प्रतिक्रिया निम्न चार्ट से समझिये|


विक्टिम              

क्रिमिनल

मुस्लिम रिएक्शन     

मुस्लिम कंकलुस्न

मुस्लिम

मुस्लिम

चुप्पी (अरब देशो मे भारतीय महद्वीप के प्रवासी पर अत्याचार )

ऐसा कभी हुआ ही नहीं |कल्पना है|

मुस्लिम

नॉन मुस्लिम

1 चुप्पी

2 वो सच्चा मुस्लिम नही है |

3 दुनिया मे किसी अन्य जगह पर हुए जुल्म की प्रतिक्रिया |

इस्लाम को और समझने की जरूरत है

नॉन मुस्लिम

मुस्लिम

यही सच है| इसे दुनिया के हर व्यक्ति तक पाहुचाया जाएँ |विशेषकर मुस्लिम बच्चों तक|

जब तक काफिर रहेंगे अत्याचार होगा \इसलिए सबको मुस्लिम बनाओ या मार डालो|

नॉन मुस्लिम

नॉन मुस्लिम

इस्लाम मे यह बुराई नही है |

आओ इस्लाम अपनाओ |

4 पूर्व धर्मों से घृणा – इस्लाम अरब से उपजा धर्म है | अरब के भीतर और बाहर दोनों ही जगहों पर मुस्लिम यह मानने को तैयार नही की इस्लाम के उदय के पूर्व कोई गैर मुस्लिम समाज कभी उन्न्त रहा होगा | भारत को लेकर यह घृणा सर्वोच्च है |


5 भय से खुश होना | - मुस्लिमों मे एक बड़ा तबका वो है जो ये देख बड़ा खुश होता है की लोग उनसे डरते है | रोड रेज़ हो या ट्रेन के स्लीपर मे किन्नर , अगर किसी को पीटीए चल ज्ञ की सामने एक मुस्लिम है तो बंदा तुरंत शांति प्रस्ताव चाहते है |


6 ईश निंदा का भय – मुसलमानो को सबसे बड़ा डर होता है अल्लाह की राह से हटना | वो उन छीजो से बचना चाहते है जो उन्हे कुफ़र मे ले जाए | इससे मुस्लिम धर्म गुरुओ का रास्ता साफ होता है | हर गैर मजहबी चीज को वो गुनाह के तौर पर देखते है \|इससे यह मानसिकता विकसित होती है की गैर मुस्लिम लोग हर पल गुनाह केआर रहे | उन्हे सुधारना या मार देना चाहिए |


ये कुछ कारण है | इस मुस्लिम मानसिकता का निम्न परिणाम होता है |


1 जहां रह रहे वहाँ की परम्पराओ का विरोध |


2 संस्कृति से जुड़ी हर चीज को कुफ़्र कह देना |


3 अपने देश के बजाय ऐसे देशो का हिमायती होना जो ज्यादा इस्लामिक है |


4 अन्य धर्मो के त्योहार , जुलूस आदि मे खलल डालना |


5 संख्या बल बढ़ाना और उसके बल पर कानून व्यवस्था को हिला देना 


शनिवार, 31 मार्च 2018

हनुमान जयंती

Hanuman जयंती ।

आज दिन भर हनुमान की भिन्न छवियां मेरे मोबाइल पर दिखती रही। हनुमान पंचमुखी थे। या उन्हें मान लिया जाता है।

   शास्त्रोक्त यह भी है कि हनुमान पाँच भाई थे।

मेरी दृष्टि से मैं हनुमान हो पाँच हिस्सो( कालखण्ड ) में देखता हूँ।

पहला हिस्सा राम मिलन से पहले। वे अतुलित बलधाम है। ऊर्जा को इकट्ठा करना सीखते है। परंतु उस ऊर्जा को छोटे टारगेट पर नष्ट नही करते।

दूसरा हिस्से में आता है लँका विजय तक का समय। निष्ठा देखिये।

तीसरे हिस्से में द्वापर

पहले पौण्ड्रक को बहका देते है।

फिर भीम का अभिमान तोड़ देते है।

अंत मे अर्जुन के रथ में विराज जाते है।

चौथे हिस्से में तुलसीदास की प्रेरणा है। अष्टसिद्धि के स्वामी संस्कृत से अनभिज्ञता का अभिनय करते है।

पंचम में हरिनगर में दक्षिणमुखी, संकटमोचन बने है। ये पंचम जागृत नही हो रहा। आलम्बन नही मिल रहा।

आ लौट के आ हनुमान।

गुरुवार, 29 मार्च 2018

गुड फ्राइडे अमर रहे

Good Friday

यीशु क्या तुम सच मे उन गुनाहों के लिए ही मरे , जो तुम्हारे नाम पर हो रहे।

यीशु हमारे गुनाहों के लिए मरें। ताकि हमें सजा न हो। पर वे तीन दिन बाद जी उठें। क्या ये चीटिंग नही हुई।

यीशु हमारे गुनाहों के लिए मरें।

इस वाक्य का विश्लेषण करें। गुनाह। कौन से गुनाह। जो आज कर रहा।

अब्राम्हीक धारणा यह है कि मनुष्य समाज आदम और हव्वा के गुनाह का नतीजा है। अब्रह्मिक्ता इसलिए भी घृणित है क्योंकि अपने जेनेसिस में वह ज्ञान के फल को खाकर प्रेम करने को सबसे संगीन अपराध मानता है। विडम्बना यह है कि अब्रह्मिकता के दोनों स्तम्भ इस सच को कैसे छुपा लेते है।

चुकी दुनिया भर के बच्चे सम्भोग से ही उपजे है। इसलिये अब्रह्मिकता की दृष्टिकोण में हर व्यक्ति जन्म से पापी है।

इस पाप से मुक्ति होगी,  कैसे?

प्रभु के पथ पर चल कर। उसके सच्चे सत्ता को स्वीकार।

अब्राहमिक धर्म एक सत्ता के अधीन है। वेटिकन और मक्का उसके दो केंद्र है। पूर्व में कुस्तुनतुनिया।

हर व्यक्ति को सनातन जहाँ सच्चिदानंद मानता है (अपने संस्कारों में एक हिन्दू 10 बार नारायण की तरह पूजा जाता है) वही अब्रह्मिक्ता उसे अपराधबोध में डालती है। वह पूरे जीवन उन आचरणों को निभाने में बिताता है जिसमे उसे पश्चाताप हो।

चर्च का कन्फेशन भी उसका हिस्सा है। चर्च आदतन अपराधियों को वर्षों तक माफी देकर अपने धंधे में मसल्स पॉवर का उपयोग करते रहा।

मोसाद से ज्यादा राजनीतिक हत्याओं के आरोप वेटिकन पर है।

भारतीय परिवेश में किसी कर्मणा पश्चाताप की बात नही है। आपने जो कर्म किया है। आप उसे भुगतेंगे।(गंगा स्नान जैसी प्रक्रिया आगामी पाप से मनसा मुक्ति का संकल्प दिलतीहै) अब्रह्मिक्ता इसके विपरीत है। वह आस्था में यकीन करती है। आपने जैसे भी कुकर्म किये आस्था कर लो स्वर्ग मिलेगा।

बुद्ध और यीशु।

1 पश्चाताप।

    यीशु के अनुयायी, यह कहते है कि कर्म का फल की क्षमा हो सकती है। बशर्ते आप यीशु की शरण मे रहो। कितना अच्छा है न सबकी सजा एक को। पर यीशु तो मरे नही , चीटिंग।

     बुद्ध ने अँगलिमल को सन्यास दिया। अंगुलिमाल जब पहचाना गया तो उससे बहुत मारपीट  हुई। अंगुलीमाल दुखी नही था। तर्क था कर्म कटने चाहिए। जितने जल्दी हो।

2 मृत्यु

यीशु के बाप का राज था। किसी मरे को जिला दिया। बुद्ध ने पुत्रशोक में डूबी महिला को कहा जा , जाकर उस घर से एक मुट्ठी तिल ले आ, जहाँ कोई न मरा हो।

   वो अंततः मर गयी होगी न। जिसे यीशु ने जिलाया। फिर चीटिंग।

अब्रह्मिकता हजारो छल से घिरी है। क्षमा देने की दुकानें चल रही। शोक में डूबे प्राणियों की भावना से खेला जा रहा। प्रार्थना से बीमारी ठीक हो रही। जय मसीह से इंजन चलरहा।