गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

चलो दलित दलित खेंले

2 अप्रेल के वाकये को लेकर मैं हतप्रभ हूँ। इतना व्यापक बन्द , हिंसा और आगजनी रही। पर इसके पीछे की रणनीति किसकी रही इससे सब अंजान रहे। यह एक दिन का बन्द था। एक दिन का घटना क्रम। पर समय के धार ने दो निशान किये थे। एक 2000 साल लम्बा था और एक 60 साल लम्बा। यह एक दिन दोनों घावों पर रिस रहा।

  अपनी खोज में मैने पाया कि बसपा और कांग्रेस ने बन्द को समर्थन दिया। दोनों ने कहा कि 2 अप्रैल को बंद का समर्थन किया जाता है। पर कोई ऐसा बयान नहीं मिला जहाँ बन्द का आवाह्न हो।

     

     यह जरूर था कि बन्द की पूरी चर्चा सोशल मीडिया से मिली।

  अपनी तहकीकात में और अंदर जाते है। न्यूज़ रिपोर्ट्स देखिये , आधे से ज्यादा लोगों को पता ही नहीं किस बात का विरोध है। एक हाथ में  मोदी विरोधी पोस्टर है। एक हाथ में हिन्दू देवी देवताओं की तस्वीर , जिनपर थूका जा रहा था, चप्पल चलाई जा रही थी।

           एक बड़ा हिस्सा गुमराह था कि सरकार आरक्षण खत्म करने वाली है इसलिये ये प्रदर्शन है।

      

मेरा निष्कर्ष यह है कि एक बड़ी आबादी या तो नियोजित थी, या फिर गुमराह।

नियोजित लोगों की बात नहीं करूँगा, क्योंकि यह मुद्दा भटकाएगा।

गुमराह लोगो की बात करूँगा।

इन्हें किसने बताया होगा कि फैसला हो गया। अब दुकान जलाना ही एक मात्र उपाय बचा है।

जाहिर है उन्होंने , जो इनके रहनुमा बनते है।

ऐसे लोग जो गुमराह नहीं थे। जिनके पास जानकारी थी। उन्होंने वो जानकारी इनसे छुपाई। इन्हें गुमराह किया।

1 टिप्पणी:

  1. मित्र बढ़िया लेख है। ये गुमराह बनाए जाने का खेल अब लोगों की ज़रूरत बन गया है। किसी को जानकारी नहीं बस सब भेड़ हो रहे हैं। हर पाले की ज़रूरत है गुमराह लोग।

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