मंगलवार, 26 मार्च 2019

वक्त है राहुल गाँधी को सीरियस लेने का -1

सन 2011 से लगातार मैं राजनीति का दर्शक रहा हूँ। राहुल गाँधी का कद कांग्रेस के बाहर मूंगफली जितना ही है।
  राहुल गाँधी की एकमात्र राष्ट्रीय उपयोगिता सोशल मीडिया और इंटरनेट के विभिन्न माध्यमों को हास्य का कच्चा माल उपलब्ध कराने की रही है।
  पर अपने न्यूनतम आय की जो स्किम वो ले कर आयें है। यह एक सनसनी है। गम्भीर बात है। सम्भवतः पिछले 15 साल के राजनीतिक और आर्थिक उठापटक में सबसे गम्भीर।
पर हम जो राहुल गाँधी पर हसने के आदि हो चुके है। यह बात नही समझ रहे।

कारणों पर चर्चा करते है।

सरकार जब भी श्रम कानून में मुआवजे बोनस या किसी भी तरह की राशि की बात करती है। तो वह दिन के हिसाब से गिनती है। कि प्रति दिन इतने रुपये।
  राहुल गाँधी महीने में बता रहे ।
वे 12 हजार के न्यूनतम आय प्रति परिवार की बात कर रहे। जिसमें 6 हजार की अधिकतम मदद की बात कर रहे।
इसके माने ये है कि अगर कोई(परिवार) 6 या कम कमाये तो 6 हजार । अधिक कमाये तो सिर्फ उतना जिससे परिवार की कमाई 12 हजार हो जाये।
  चूंकि यह मासिक है अतः इसका प्रभाव नौकरीशुदा लोवर मिडिल क्लास लेंगे। इससे होना यह है कि उनके मालिक  6 हजार की राशि ही तय कर देंगे।
   अगर यह राशि हर साल न बढ़े तो अर्थव्यवस्था में भयंकर स्थिरता आएगी। क्योंकि एक बड़े समुदाय की आय स्थिर हो जाएगी।
  अगर यह राशि बढ़ जाये कि चलो अब अधिकतम मदद 6500 और गारंटी 12500 तब मालिको की चांदी हो जाएगी। मार्किट में पैसा बढ़ जाएगा। पर वेतन के खर्च स्थिर। इससे शहरी/ नगरी अमीरी गरीबी का अनुपात अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाएगा।
चलिए दोनो तरफ बढ़ा दिया कि 13000 को गारन्टी और अधिकतम मदद 6500 । तब स्थिति और खराब इससे कार्य शैली सबकी सरकारी हो जाएगी।
  कम आय वर्ग की पहुँच वाले सभी सर्विस सेक्टर की हालत खराब हो जाएगी।
   जिनमे पहली चपेट स्कूलों को लगेगी। महंगे स्कूल ही ठीक रहा जाएंगे। बाकी सब सरकारी समकक्ष।

1 टिप्पणी: