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राहुल गाँधी शब्द इस्तेमाल करते है प्रति परिवार।
कानूनी तौर पर परिवार को परिभाषित करने की बड़ी आवश्यकता है। पंचायती अधिनियमों से लेकर श्रम कानूनों तक परिवार की अलग अलग परिभाषा है।
मोटा मोटा ( जो सबमें कॉमन है) वह कुछ इस तरह है।
एक छत के नीचे रहने वाला एक चूल्हे में रोटी बाटने वाले एक परिवार।
एक व्यक्ति की दो शादी दो बीवी और उनके बच्चे दो परिवार गिने जा सकते है। भले रहना खाना एक साथ हो।
एक कृषक भले ही घर अलग , चूल्हे अलग और खेत की ऋण पुस्तिका का बंटन न हो । तो एक परिवार।
चर्च में हुई हर शादी परिवार का सृजन ( making of family) मानी जाती है। अतः एक छत एक चूल्हे में रहने वाले 2 जोड़े दो परिवार गिने जाते है।
राहुल गाँधी को सीरियस लेने की जरूरत इसीलिये है कि अगर यह योजना लागू होगी तो हितग्राहियों का बड़ा झमेला है।
नाम जोड़ने और काटने में क्या घपलेबाजी होगी यह कहना नामुमकिन है।
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