रविवार, 17 फ़रवरी 2019

न भूलेंगे न क्षमा करेंगे -1

(प्रस्तुत कविता मौलिक नही है यह रमाशंकर विद्रोही की चर्चित कविता की पैरोडी है)
मैं रामप्रकाश
भारत पाकिस्तान के बीच तैनात हूँ।
कश्मीर मेरी गवाही दे।
मैं वहां से बोल रहा,
जहाँ कबीलाई ने कुचले है 47 से 48 तक सर,
और काटे है स्तन।
ऐसे ही कुचले सर
और ऐसे ही कटे स्तन
लाहौर से अमृतसर की ट्रेन में भी आये थे।
और दिल्ली के सड़को में बिखेर थे नादिरशाह ने।

मैं सोचता हूँ
और बारहा सोचता हूँ।
की आखिर क्यों मेरी सभ्यता के हर मोड़ पर
ऐसे कुचले सर
और ऐसे कटे स्तन रखे है।
जिसका सिलसिला
तैमूरलंग की दिल्ली से लेकर
जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन डे तक
और दाहिर की राजकुमारी से लेकर
मोपला की बेटियों तक चला जाता है।
एक सर जो किसी पिता का हो सकता है,
उसे ऐसे कुचला गया कि आँख जुबान के ऊपर आयी।
एक स्तन काटा गया है
उसमे से दूध निकला था,
चिपचिपा सूखा रखा है।
पर यह मुझे व्यथित नही करता।
मैं उन सरो और स्तनों को भुला
हर बार उन्हें गले लगाया,
जो गर्व करते है
हजार सर और लाख स्तन कटने के वाकयो पर।
मेरे पुरखे भी चाहते है शांति
वह भी देख आशीष देते है हर बार।
मैं भी कुचलता सर और काटता स्तन,
अगर न मान लेता की उनका मेरा ईश्वर
नाम से अलग है,
पर है एक ही।
पर एक ईश्वर है
जो मुझसे कहता है कि सिर्फ वही ऐश्वर है
उसकी बुते नही।
मैं बुतो को पूजता हूँ।
फिर से मेरा सर कुचल दिया जाता है।
मेरी बेटी का स्तन काट दिया जाता है।
मेरी बेटी कहती है बाबा इन्हें क्षमा करना
ये नही जानते ये क्या कर रहे।

जहाँ मेरी बेटी का स्तन फेका गया
मेरा सर भी वही।
मैं देख रहा की ये सर और स्तन
बंगालियों की भी हो सकती है।
अहमदियों की भी, शियाओं की भी
वजीबुल्ला का सर भी यही है।

क्योंकि अहले सदर तो अहले सदर है
उनका नाम क्या।
वो नादिरशाह भी है।
कासिम भी है।
तैमूरलंग भी है।
और अत्यधुनिक पाकिस्तान का isi भी

उनका एक ही काम है।
बुतों को तोड़ना
सर कुचलना स्तन काटना।

जिन्होंने दावा किया है
इतिहास को तीन वाकयो में पूरा करने का।
काफिरों का कोई हक नही।
हम जन्नत जमीन पर लाएंगे।
खिलाफत कायम करके रहेंगे।

पर मैं सहस्त्रबाहु का वंशज
परशुराम की प्रतिज्ञा के साथ जीता हूँ।
की आतताइयों मैं तुम्हारा विनाश समूल कर दूँगा।
पर मैं नही करूँगा।
क्योंकि जिस समय आप यह कविता पढ़ रहे।
ठीक उसी समय मेरी बेटी चोंच बना सेल्फी ले रही।
और मेरा बेटा किसी लड़की से न्यूड मांग रहा।
या यूं कहूँ की मैं लड़की के लिये रिश्ता ढूंढ रहा
और बेटा अमेरिकी वीसा की लाइन में है।
अटक से कटक ये जो चुतियापा फैला है मेरे दोस्त
एक दिन हम इसी से मारे जाएंगे।

इतिहास का पहला चुतियापा
श्वेतकेतु ने किया था।
उसने अपनी माँ को किसी के साथ देखा।
और पिता के साथ मिलकर विवाह का नियम बना दिया।

विवाह से बच्चे हुए।
बच्चों से जिम्मेदारी आयी।
पढ़ाई आयी।
घर बनाने की जिम्मेदारी आयी।
जिम्मेदारी रिश्वत की प्रेरणास्त्रोत होती है।

इस तरह
मेरा काम बनता भाड़ में जाये जनता का सिद्धांत आया।

फिर सिद्धांत ने कहा इतिहास की माँ की आँख
भेड़ियो को दो भेड़ो की रखवाली।
भेड़िये सताये गए है भेड़ो से।
उनके होने के कारण
चीखने के कारण
शांतिप्रिय भेड़िये बदनाम होते है।
फिर कलमनवीसों ने बताया
की भेड़ो को कभी भेड़ियो ने मारा ही नही।
कलमनवीसोंने यह भी बताया
की न बुते तोड़ी गयी।
न सर कुचले गए।
उनका ये भी मानना था कि गोधरा में,
ट्रेन सहित सवारों ने आत्मदाह किया।
और कश्मीर को पण्डितो ने स्वेच्छा से छोड़ा।
न उनकी सम्पत्तियों पर कब्जा हुआ।
न उनके सर कुचले गए।
न ही स्तन काटे गए।
फिर वही बात
पर ये सर कुचलने से पहले कंधो पर थे।
ये स्तन कटने से पहले छातियों में लगे थे।
जैसे ये कविता एक पैरोडी होने से पहले
एक अनदेखी सच्चाई है।
मैं कहता हूँ खुद को बचा लो बुतपरस्त लोगों
मेरे उत्तर के लोगो खुद को बचा लो
जिनकी दीवारों पर लिखा गया
पण्डित तुम जाओ , लौंडिया छोड़ जाओ।
मेरे दक्षिण के लोगो
जिनकी बेटियों को अरब में बेचा गया।
मेरे पूर्व के लोगो,
जिनके आमार सोनार बंगला को दो  हिस्सों में बाटा गया।
मेरे पश्चिम के लोगो
जहाँ हजार पद्मिनी को कूदना पड़ा अंगारो में।
खुद को बचा लो ।
मैं तो चन्द दिन पहले मारा गया पुलवामा में।


5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही उम्दा... संवेदनशील कविता ��

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  2. केवल जिंदगी के लिए गुलामी करने वालों को इन सब अमानवीय, भयावह और हृदयविदारक कुकृत्यों से कोई फर्क न पड़े है साब जी....100 में से केवल दस देश का सोच रहे हैं बाकियों को तो केवल जीने की पड़ी है।

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